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Wednesday, August 11, 2010

की जूते कहा उतारे थे ...


छोटी छोटी चित्रायी यादें
बिछी हुई है लम्हों की
लॉन पर
नंगे पैर उनपर चलते चलते
इतनी दूर चले आये
की अब भूल गए है की
जूते कहा उतारे थे |

एडी कोमल थी,जब आये थे
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी
और नाजुक ही रहेगी
इन खट्टी मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे |

सच भूल गए है
की
जूते कहा उतारे थे |

पर लगता है अब उनकी ज़रुरत नहीं !



-Favorite lines from movie Udaan 

Monday, August 9, 2010

उड़ान

जो लहरों से आगे नज़र देख पाती, तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ
वो आवाज़ तुमको भी जो भेद जाती, तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ
जिद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता, तो खिडकियों से आगे भी तुम देख पाते
आँखों से आदतों की जो पलकें हटाते, तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ

मेरी तरह खुद पर होता ज़रा भरोसा, तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते
रंग मेरी आँखों का बांटते ज़रा सा, तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते
नशा आसमान का जो चूमता तुम्हें भी, हसरतें तुम्हारी नया जन्म पातीं
खुद दुसरे जनम में मेरी उड़ान छूने, कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते |


-A nice poem from Movie Udaan